जब से आये हो अवगुंठन खोल रही हैं
मेरे जीवन में उम्मीदों की कलियाँ
आये हो तुम जीवन में विश्वास लिये
प्यारे सपनों का ऊँचा आकाश लिये
नये प्रीत के गीत, नये उल्लास लिये
प्रथम प्रेम की प्रथम पुलक आभास लिये
मन के अंदर जैसे कोयल बोल रही है
उत्सवमय अब मेरे जीवन की गलियाँ
तुलसी ज्यादा महक उठी है आँगन में
झूम उठे हैं झूमर फिर से सावन में
खुद को पाया मैंने फिर से दर्पण में
नयी खनक-सी जागी है फिर कंगन में
उल्लासित हो पुरवाई सँग डोल रही हैं
खुशियों के फूलों से बनती ये फलियाँ
प्यार भरा तुमने मेरा संसार रचा
गीत सृजन का तुमने ही आधार रचा
रंग भरा है जीवन में त्यौहार रचा
तुमने मुझको पूर्ण किया घर बार रचा
मीठापन जो मन में मेरे घोल रहीं है
प्यार तुम्हारा जैसे मिश्री की डलियाँ