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उम्मीद / ज़िया फतेहाबादी

तू बनाने मुझे आई है, चली जा, जा भी
तेरी बातन में ना आऊँगा, ना आऊँगा कभी
तेरी बातों ही में आकर तो हुआ हूँ बर्बाद
छोड़ पीछा मेरा, कमबख्त, कमीनी, बदखू
ज़िंदगी मेरी अजीरन हुई तेरे कारण
तू मेरे पीछे चली आती है - दिन हो कि हो रात

बाद ओ बाराँ में भी पाता हूँ तुझे साथ अपने
और जब तू है मेरे साथ तो फिर फ़िल्वाके
मेरी मंज़िल हुई जाती है पहुँच से बाहर
तेरे नगमों की मधुर तानों में खो जाता हूँ
शोरिश ए ज़ीस्त से बेफ़िक्र-सा हो जाता हूँ
तुझ को मनहूस अदा हाए तबस्सुम की क़सम
बिजलियाँ खिरमन ए दिल पर ना मेरे और गिरा
मेरे अश्कों को ना दावत दे उमड़ आने की

तेरे चहरे से उतर जाए जो गाज़े की ये तह
देखना तुझ को गवारा ना करे आँख कभी
तेरे रंगीं ओ हसीं सपने हैं मकर और फ़रेब
ज़िंदगी तल्ख़ हकीक़त है तो फ़िर तल्ख़ सही