कवि होने से थक गया हूँ
होने की इस अजब आदत से थक गया हूँ
कवि होने की क़ीमत है हर चीज़ से बड़ी है वो कविता
जिसमें लिखते हैं हम उसे
लिखकर सब कुछ से बिछड़ने से थक गया हूँ
अपना मरना बार-बार लिखकर मरने तक से बिछड़ गया हूँ
हमारे बाद भी रहती है कविता
इस भुतहा उम्मीद से थक गया हूँ ।
जनाब नंदकिशोर आचार्य और जनाब अशोक वाजपेयी की एक-एक कविता के नाम जिनसे अपनी गुस्ताख़ नाइत्तेफ़ाकी और इश्क़ के चलते यह कविता मुमकिन हुई है