उम्र है
पड़ाव है
कुंठा है
या समझौता है
कह नहीं सकता
सच है
सच है, जो सामने है
सच है
लड़ नहीं सकता
तू है
तो ठीक
नहीं है
ठीक है
चाह नहीं सकता
प्रेम है
नफ़रत है
मुहब्बत
घृणा, स्वार्थ है
बच नहीं सकता
मैं ही हूँ राम
विभीषण
भरत
और रावण
भाग नहीं सकता