दौड़ता भुलाना वो ठिकाना फरामोश किया, जाता है जहाँ को तहाँ क्या जवाब करेगा।
किया था कटार जो अजार काहूको न दूँगा, लूँगा तेरा नाम जो तमाम ऐब जरेगा।
कौड़ी पाछे धावता है हीरा विसरावता है, बोअता बबूर सो अंगूर कैसे करेगा।
धरनी पुकारता है आज न सँभारत है, बड़ी बाजी हारता है कहाँ ताँइ भरैगा॥19॥