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उर्दू गजल / राम प्रसाद बिस्मिल


सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,

पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,

खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!

खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,

जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !


नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,

खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,

देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,

फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,

देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?