गंध मादन की हवाओं ने
भरी होगी रिक्तता
तुम्हारे हृदय की
तुम्हे भी तो पुरु
सहला गई होगी
चांद की ठण्डक
और चढ़ते सूरज के साथ-साथ
प्रकाश-पुंज हुई होंगी
तुम्हारी आँखें
फिर वो क्या था
जो तमसे अलग
भोगा उर्वशी ने
कि अभिशप्त हुई वह?
गंध मादन की हवाओं ने
भरी होगी रिक्तता
तुम्हारे हृदय की
तुम्हे भी तो पुरु
सहला गई होगी
चांद की ठण्डक
और चढ़ते सूरज के साथ-साथ
प्रकाश-पुंज हुई होंगी
तुम्हारी आँखें
फिर वो क्या था
जो तमसे अलग
भोगा उर्वशी ने
कि अभिशप्त हुई वह?