समझ में नहीं आता
जीवन को कैसे देखूँ
जो कल गुजरा
वो कैसे भूलूँ?
दिल में
बेकाबू दर्द की लहर
उठती है
आँखों की कोर में
आँसू
आकर ठहर जाते हैं
क्या,
स्त्री होना ही गुनाह है?
प्यार, ममत्व, स्नेह
शायद सच नहीं
सच है मात्र देह
समझ में नहीं आता
जीवन को कैसे देखूँ
जो कल गुजरा
वो कैसे भूलूँ?
दिल में
बेकाबू दर्द की लहर
उठती है
आँखों की कोर में
आँसू
आकर ठहर जाते हैं
क्या,
स्त्री होना ही गुनाह है?
प्यार, ममत्व, स्नेह
शायद सच नहीं
सच है मात्र देह