Last modified on 26 जुलाई 2011, at 14:46

उलझन सुलझते ही / अरविन्द श्रीवास्तव

उलझन सुलझते ही
कुछ ने फेर लिया मुँह
कुछ ने तोड़ लिया नाता
कुछ जुट गए
उलझन से त्रस्त लोगों की तलाश में
और कुछ आ धमके
उलझन भरे दिनों में
मुझ पर खर्च किए गए
शब्दों को वापस मांगने।