दाखिल होते हैं
इस घर में
हाथ पर धरे
निज शीश।
सीधी होती जाती हैं
उलझी उलटबाँसियाँ
अपनी ही कथा लगती हैं
सब कथायें।
जिनके बारे में
कहा जा रहा है
कि मन न भए दस बीस।
दाखिल होते हैं
इस घर में
हाथ पर धरे
निज शीश।
सीधी होती जाती हैं
उलझी उलटबाँसियाँ
अपनी ही कथा लगती हैं
सब कथायें।
जिनके बारे में
कहा जा रहा है
कि मन न भए दस बीस।