आओ तत्त्व पर लिखें
तत्त्व की तल्लीनता पर कहें
तल्लीनता के पार की
भी हो जो, कुछ सुनें
जहाँ कुछ भी शेष
नहीं रह जाता पकड़ने को,
नहीं बचता उलीचने को
बड़ी उलटी बात है
देह की अनुभूति के परे के अनुभव
जहाँ साकार शून्य
उभर आता है
न वैराग हो फिर उन्मुख
न हो अनुराग विमुख,
न संघर्ष भ्रमित होकर हो अभिमुख
है खड़ा समन्वय,
सहयोग में सन्मुख
सध रहा सामंजस्य,
है क्षितिज हुआ
जाता ऊर्ध्वोन्मुख
भीतर में सूरज-सा उग आता है
सब कुछ छूट जाता है,
भरा था जो अन्तस में ठसाठस
'मैं' और 'हूँ' भी तिरोहित हो जाता है
फिर क्या है पकड़ना
मौन भी यही बतलाता है...
पर उलटी बात है,
यह उलटी बात है॥