Last modified on 15 मार्च 2017, at 12:32

उल्लास / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

खीचूँगा ललाट पर तेरे
मैया! रक्त-तिलक मैं आज!
मैं उच्छृंखल नष्ट करूँगा
तेरी अटल-शांति के साज!

विध्वंसक त्रिशूल ले तेरा
नृत्य करूँगा मैं विकराल!
छोडूँगा फुफकार भयंकर
बनकर विराट विष-भरा व्याल!

दूँगा मसल वासुकी का फन
चुटकी से मैं महाप्रचंड!
कहलाऊँगा विश्व-विधात्री का
विद्रोही-पुत्र उदंड!

आँखों में भर क्रोध भयंकर
अग्नि-शिखा-मिस ज्वालामय!
टहलूँगा संसार-समर में
रूद्र-सरीखा मैं निर्भय!

कर डमरू का नाद रचूँगा
पल में घोर प्रलय का कांड!
लील सूर्य-शशि-तारा-दल को
तोड़-फोड़ दूँगा ब्रह्मांड!

7.1.29