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उल्लू / एडिथ जॉय स्कोवेल / बालकीर्ति

सारी रात उल्लू शिकार करते रहे
उपनगरीय लॉन के ऊपर
एक-दूसरे को कई कई तरह से बजती विलायती नफीरी की
आवाज में देते जवाब !
हे समर्पित, निर्लज्ज जंगलीपन !
एक देर तक अपने को सदा देता गूँजता रहा

नासमझ प्रतिभा में मुक्त

जब रात कुछ छँट गई,
शहर के ऊपर ऊँची और अस्पष्ट बिछी हुई,
और दिन
बहुत पीछे चला गया वसन्त तक
गीत की झाग में झरता ,
हालाँकि अभी तक दिन के किसी पक्षी ने गाना नहीं गाया ,
उल्लू अकेले ही पुकारता रहा फिर फिर,
ख़ला की म्यान
में तलवारें दो:
इसकी सदा और इसके
 कान ;
फिर सब ख़त्म और कुछ भी नहीं .
अचानक कौन सी जंगली घाटी पार हो गई ?
एक काली चिड़िया की आवाज में
बोला दोस्त
पास से ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकीर्ति

लीजिए, अब अँग्रेज़ी में वह मूल कविता पढ़िए
            Edith Joy Scovell
                 The owl

All Night the hunting owls
Above suburban lawns
Answered each other’s oboe voices.
O dedicated ,limpid wildness!
One stayed self echoing late
In mindless genius free
When the night was lifted somewhat,
Streched high and vague above the city,
And day had drawn back far
To spring,fall in song foam,
Though no birds of day sang yet .
The owl called on and on alone,
All space it’s sheath and ear;
Then ceased and nothing was.
Suddenly _what wild valley crossed ?
A black bird’s voice of friend spoke near.