प्रकाश और छाया की सन्धि पर
श्याम-शुभ्र क्षीर-सरोवर के तीर पर मैंने उषा-देवता
को देखा था !
श्वेताभ-नील सौगन्धिक पर वह खड़ी थी,
धवल-सुनहली शेफालिका के पहने गहने ।
सफ़ेद-हरे अंगूरी वस्त्र ने
पतले कुहासे-सा उसे आधा ही ढँक रखा था ।
वह हँसी
मानो गुलाबी बादलों को भेग कर वासन्ती चाँदनी
चमक उठी हो ;
और सरोवर में कूद गई —
अपनी डूबती बाईं उँगलियों में फिर आने का इशारा लिए ।