अरे रे, किरणों की कोसी ने अपने कगारे ढहा दिए हैं,
दूर तक सर्वत्र वेग से टूटता पानी उमड़ता-घुमड़ता चारों
ओर फैल रहा है ।
अन्त तक स्थिर बलता वह एक अकेला शुक्रतारा दीप
दो अंगुल, चार अंगुल, दस अंगुल, रोशनी में धीरे-धीरे
डूब जाता है ।