मेरी तमाम उम्र
उसके लिए
जो दूर रहकर भी
मेरी तन्हाइयों में
दस्तक-सा
जाड़ों में ऊष्मा-सा
धूप में बदली-सा
एहसास में स्पर्श-सा
अपने नहीं होने पर भी
अपने होने को दर्ज
कराता-सा
मेरे मिटने तलक
मुझे सहेजता-सा
मेरी तमाम उम्र
उसके लिए
जो दूर रहकर भी
मेरी तन्हाइयों में
दस्तक-सा
जाड़ों में ऊष्मा-सा
धूप में बदली-सा
एहसास में स्पर्श-सा
अपने नहीं होने पर भी
अपने होने को दर्ज
कराता-सा
मेरे मिटने तलक
मुझे सहेजता-सा