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उसकी आँखें / उषा राय

उसने फिर तोड़ा
भरोसा मेरा
हालाँकि वह पहले भी
कई बार तोड़ चुका था ।

वह कहता था
कुछ कहने की
ज़रूरत नहीं
मैं सब देख रहा हूँ ।

मैं भी सोचती थी
आँखे हैं उसके पास
तो देखता ही होगा ।

दरअसल मेरी
ख़ुद्दार ग़रीबी
खुली थी उसके आगे
पानी के लिए बिलबिला रही थी
जबकि कई तालाब थे उसके पास

मैं भी सोचती थी
पानी है तो जाएगा कहाँ

उसने फिर भरोसा दिया
वह शुरू से मेरा अपना है
पारदर्शी हैं नीतियाँ उसकी
रँग लाएँगी एक दिन
पानी के चश्मे बहेंगे
सब कुछ हरा-भरा हो जाएगा ।

सुनती रहती, इन्तज़ार था
और करती भी क्या
ग़रीबी के अलावा और भी चीज़ें थी मेरे पास
जिन्हें बचाने के चक्कर में
मैं और भी ग़रीब होती जा रही थी

वह बहुत व्यस्त रहता
एक दिन विश्व शान्ति की
बात करने के बाद

उसने मेरी ओर देखा
तब लगा अब ग़रीबी
इतिहास की बात हो जाएगी ।

उसने गम्भीरतापूर्वक कहा
सुनो ! कुछ ऐसा करो
यह सच्चाई उठाकर
कहीं और रख दो
निष्ठा को सम्भालो ज़रा
अपनी बेचैनी पर लगाम लगाओ
कुछ मनोरँजन पर ध्यान दो ।

अपनी जगह से हिलो
क्योंकि सुन्दरता के लिए
लचीला होना बहुत ज़रूरी है।

दूसरों को भी जगह दो
प्यार नहीं तो व्यापार ही सही
थोड़ा लालच लाओ अपने भीतर ।

अरे ! ग़रीबी की तो सोचो ही नहीं
वह तो मानसिक अवस्था का नाम है ।
बाकी सब मै देख रहा हूँ न !

और उसके देखने पर
भरोसा करना ही था
क्योंकि मैंने ही तो चुना था उसे
उसके अलावा उसके
तालाब की सारी मछलियाँ
शपथ ले रहीं थीं कि
थोड़ी शोशेबाजी है पर समझदार है

अचानक एक दिन
ख़बर मिली कि अपनी भी रक्षा
नहीं कर पाया वह और मारा गया ।

मैं तो परेशान रो-रो के बुरा हाल
कैसे तोड़ दूँ उसका मोह
आख़िर एक ही नज़र से देखता था सबको ।

लेकिन तब तो मैं और भी
सन्नाटे में आ गई थी
जब लोगों ने बताया
उसकी आँखें तो पत्थर की थीं ।