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उसकी ज़िद-6 / पवन करण

कुछ याद आते ही वह मेरी बात काटते हुए बोली —
पहले मेरी बात सुनो ।
मैं तुम्हे कुछ बताना चाहती हूँ ।
कल रात मैंने एक सपना देखा उस बारे में ।

वह बोली — मैंने देखा मैं गेंद हो गई हूँ
और तुमने मेरी ज़िद पर उछाल दिया है मुझे आकाश में ।
वहाँ पहुँचकर इधर-उधर ढरक रही हूँ मैं
कभी-कभी तारे से टकराती हूँ तो कभी किसी ग्रह से
और चाँद तो पीछे पड़ कर रह गया मेरे ।

मैं ऊपर से तुम्हें धरती पर आकाश की तरफ़
मुँह करके खड़े मुझे खोजते देख पा रही हूँ ।
मैं तुम्हें आवाज़ दे देकर बुला रही हूँ
मगर तुम नहीं सुन पा रहे हो मुझे ।

अचानक चाँद ने रोक लिया है मेरा रास्ता ।
मुझसे करने लगा है प्रणय निवेदन ।
मैं घबरा रही हूँ,
मैं किसी भी तरह उससे बचकर
तुम्हारे पास पहुँचना चाहती हूँ ।
अब तुम बताओ, मेरे सपने में आगे क्या हुआ होगा ?
— उसने हँसते हुए मुझसे पूछा
मैने कहा — मुझे क्या पता ?

फिर वह बोली —
जब मुझे कोई रास्ता नहीं सूझा बचने का,
तब मैंने चाँद को धरती पर तुम्हें दिखाते हुए कहा
वो देखो, वो नीचे, जो मुझे खोज रहा है ।
मुझे लगता है कि वह तुमसे भी ज्यादा ताक़तवर है
उसी ने एक झटके में मुझे उछाल कर यहाँ तक पहुँचा दिया
क्या तुम उसी तरह एक बार में
नीचे धरती पर उछाल सकते हो ।

कितना मूरख था चाँद, जो उसने भी
वही ग़लती दोहराई, जो तुमने ।
सोचा ना समझा, तुम्हारी तरह उसने भी
उछाल दिया मुझे धरती पर ।

फिर उसने भर्राती हुई आवाज़ में कहा —
मैं चाहे कितनी भी ज़िद करूँ तुमसे,
तुम मेरी एक ना मानना, ज़रूरी नहीं कि चाँद
हर बार मेरे कहने पर मूर्खता करे ।