दाब था
एक घुटन थी
चेतना को उर्ध्व पाकर
काजल जला था रात भर
और यूँही बेबात
बुझी आँखों को
कजरारे हैं नैन तुम्हारे
उसने कहा था!
दाब था
एक घुटन थी
चेतना को उर्ध्व पाकर
काजल जला था रात भर
और यूँही बेबात
बुझी आँखों को
कजरारे हैं नैन तुम्हारे
उसने कहा था!