कौन है वह आदमी
जों हमें आश्वासनों का अमृत पिलाकर
अब तक भरता रहा है
हमारे पेट को,
उसे पहचानों
दोस्त !
उसे पहचानना ही होगा।
वह अकेला नचा रहा है
हम तमाम लोगों को,
और हम हैं
कि नाच रहे हैं
मेरे दोस्त !
कब पहचानोगे उसे ?
कब करोगे बंद नाचना ?
हम तुम सभी
थक भी तो गये हैं
उम्मीदों के घुँघरू बाँधकर
नाचते-नाचते।