यूं ही घनिष्ठ नहीं हो सकते थे वे
लेकिन एक लम्बी तारीफ के बाद
उसने अपने आपको
उसके बेहद करीब पाया
उसे बताया गया-
वह एक आश्चर्यजनक प्रतिभा है
जिसमें विविधताएं इतनी हैं कि
इनमें से कोई एक भी
किसी का मन मोह ले सकती है,
वह स्वयं से तराशी गयी कला है
जिसे सिर्फ लोगों के बीच आना है,
अपने बोझिल पर्दे को हटाकर,
सुनते-सुनते, आग की तरह
चमक उठा था उसका चेहरा
मानो रोम-रोम उसका दहन होने को तैयार हो
वे बातें उसे बेहद अच्छी लगी थीं
और वे बार-बार अपने को
उसके मन के भीतर ही भीतर दोहराने लगी थीं
जैसे वहीं से उनका जन्म हुआ हो
और उसकी इतने दिनों पुरानी अनाम सोच को
एक नाम मिल गया था।
यह घटना सचमुच आश्चर्यजनक थी
यह पहली बार की गयी उसकी प्रशंसा थी
वह अब तब पूरी तरह पिघलने को थी
उसे लगा वह खुशियों को बर्दाश्त नहीं कर पायेगी
और उसने अपना सर उसके कंधों में रख दिया।