देखो न बड़ी झील !
वह अल्हड़ मछली
मेरी ही आँखों के सामने
पी गई है पूरा एक जल-गीत
और गीत के लय की
मेरे भीतर लहर उठ रही है लगातार
समझाओ न उसे बड़ी झील !
मानुस की भाषा में
न तैरा करे वह इस तरह
नहीं तो भाषा के शिकारी
मार खाएँगे उसे भी एक दिन !