लज़्ज़तों की जुस्तजू में इतनी दूर आ गया हूँ
चाहूँ भी तो लौट के जा नहीं सकूंगा मैं
उस उदास शाम तक
जो मेरे इन्तज़ार में
रात से नहीं मिली।
लज़्ज़तों की जुस्तजू में इतनी दूर आ गया हूँ
चाहूँ भी तो लौट के जा नहीं सकूंगा मैं
उस उदास शाम तक
जो मेरे इन्तज़ार में
रात से नहीं मिली।