उस के चेहरे पर
कई इतिहास लिखे थे
जिन की भाषा
मेरी जानी नहीं थी।
इतनी बात मैं ने पहचानी थी
मगर फिर भी
मैं उन्हें अपने इतिहास की नाप से
नाप रहा था।
आह! पन्नों की नाप से
कहीं पढ़ लिये जा सकते
तो
नये या मनमाने भी गढ़ लिये जा सकते
इतिहास...
देखा उसे जिस ही क्षण मैं ने
पास-
उसी क्षण जाना
कि कितना व्यर्थ है मेरा प्रयास...
नयी दिल्ली, 1979