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उस दिन / मनविंदर भिम्बर

उस दिन
आसमान साफ़ था
बादलों में हलचल थी
वो अचानक मिले
जब उन्हें होश आया तो काफ़ी आगे निकल चुके थे
वापस आना संभव न था

उस दिन
बदली ने कहा
मैं हवाओं के वश में हूँ
मेरी क़िस्मत में हैं पहाड़ों की चट्टानें
मेरे सामने हैं न ख़त्म होने वाली राहें

बिछड़ते हुए उदास न होना
कहीं
भटक जाऊँ पहाड़ों में
या सुनसान राहों में
और मुझे नसीब हो रेत की एक क़ब्र
उस क़ब्र पर अगर पहुँचो
तो उस पर इबारत टाँक देना

"हम उल्टी दिशाओं के बादल
अचानक टकरा गए
फिर सारी उम्र लड़ते रहे हवाओं के खिलाफ़"