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उस
धुंधले कमरे से
अचानक
हल्की शाल ओढे़
बाहर आईं तुम
किसी को
तकलीफ़
नहीं दी
हमने
सोते हुए
नौकरों को
नहीं जगाया
(रचनाकाल : 1908)
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उस
धुंधले कमरे से
अचानक
हल्की शाल ओढे़
बाहर आईं तुम
किसी को
तकलीफ़
नहीं दी
हमने
सोते हुए
नौकरों को
नहीं जगाया
(रचनाकाल : 1908)