चले आइए
ज़बानों की सरहद के उस पार
जहाँ बस ख़मोशी का दरिया
मचलता है अपने में तन्हा
ख़ुद अपने अदम ही में ज़िंदा
ज़बानों की सरहद के उस पार
किसी की भी आमद नहीं है
बस इक जाल पैहम हदों का
मगर कोई सरहद नहीं है
चले आइए
ज़बानों की सरहद के उस पार
जहाँ बस ख़मोशी का दरिया
मचलता है अपने में तन्हा
ख़ुद अपने अदम ही में ज़िंदा
ज़बानों की सरहद के उस पार
किसी की भी आमद नहीं है
बस इक जाल पैहम हदों का
मगर कोई सरहद नहीं है