शीतल पड़ जाए जब
मेरे घावों की धरती
सूख जाएँ जब
आशाओं की कलियाँ
झुलसी हुई घास को
चीरती हुई
निकल जाएँ जब
मेरी असफलताओं की
कटीली झाड़ियाँ
तड़कने लगें जब
आँसुओं से सूखी
मेरी आँखों की सीपियाँ
तुम सर्दी की
किसी रात
बरस पड़ना
एक भटके हुए
बादल की तरह
हृदय की आग में तपती
मेरी ठंडी पीड़ाओं पर।