हर मजहब से ऊँचा है इंसान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
मंदिर- मस्जिद ने जन को कटवाया है
कौन बताएगा किसने क्या पाया है
सिर्फ बचाए रखना है ईमान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
हर मजहब से ऊँचा है इंसान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
हवा और पानी ने कब है भेद किया
इस मिट्टðी ने भी है सबको स्नेह दिया
लहू-लहू का रँग है एक समान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
हर मजहब से ऊँचा है इंसान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
काबा-काशी, मंदिर-मस्जिद एक
सबकी इच्छा, सबकी शिक्षा नेक
करें सदा नीयत का ही जयगान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
हर मजहब से ऊँचा है इंसान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत