ऊँट बड़े तुम ऊट-पटाँग!
गरदन लंबी, पूंछ जरा-सी
आँखें छोटी, दाटत बड़े,
ऊबड़-खाबड़ पीठ, ऊँघते
रहते अक्सर खड़े-खड़े।
बँधी गद्दियाँ हैं पैरों में
लेकिन झाडू जैसी टाँग!
सारा हुलिया बेढंगा है
शीशा देखो कभी अगर,
लोट-पोट खुद हो जाओगे
होगी अकड़ रफूचक्कर।
चाल तुम्हारी ऐसी जैसे
चलता कोई पीकर भाँग!