अजब-गजब आकार तुम्हारा
बालू ही संसार तुम्हारा,
कमर पे कूबड़ रखा हुआ है
दिया हो जैसे किसी ने टाँग।
भोली सूरत गैया जैसी
लंबी गरदन है जिराफ-सी,
कूँ-कूँ करते हो तुम बिल्कुल
जैसे मुर्गा देता बाँग।
लंबे-लंबे सफर नापते
पानी बिन न खड़े टापते,
रेत पे सरपट दौड़े जाते
भर के नन्ही सी छलाँग।
रेगिस्तानी तुम जहाज हो
मरुभूमि के महाराज हो,
कौन है सानी भला तुम्हारा
भारी बहुत तुम्हारी माँग।