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ऊधो ऐसी कइयो हरि से / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊधो ऐसी कइयो हरि सें,
नंदलाला गिरधर सें।
कै गये ते दस पांच रोज की,
बीत गई हैं बरसें। ऊधो...
खान पान निस नींद न आवे,
प्राण रात दिन तरसें। ऊधो...
अब तो ये आंखन के अंसुआ,
होड़ लगाये बरसें। ऊधो...