बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
ऊधौ रूप राधकाजू कौ,
कृस्न बिछुरतन सूकौ।
मन उड़जात तिनूका नाँई
मन्द मन्द में फूँकौं।
गदिया पलंग गदेला त्यागो
परवौ है अब भू कौ।
भुगतै मिटें, करौ कछु हू है,
कछू पाय आगंूकौ।
ईसुर पार लगत ना बँदरा
फिरत डार कौ चूकौ।