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ऋतु गीत / अर्जुन कुमार सिंह 'अशांत'

कुहुकि-कुहुकि कुहकावे कोइलिया,
कुहुकि-कुहुकि कुहुकावे।।

पतझड़ आइल, उजड़ल बगिया,
मधु ऋतु में टुसिआइल फुलुंगिया।
इन हरियर-हरियर पलइन में,
सुतल सनेहिया जगावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।

खिसिकल मधु-ऋतु, उठल बजरिया,
चुवल कोंच, झर गइल मोंजरिया।
पछिया झरकि चले, तलफे भुभुरिया,
देहिया में अगिया लगावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।

झुलसि गइल दिन, अउँसी के रतिया
बरसे फुहार रिमझिम बरसतिया।
करिया बदरवा के सजल करेजवा में,
चमकि बिजुरिया डेरावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।

उपटि गइल भरि छिछली पोखरिया,
बिछली भइल किंच-किंचर डगरिया।
सूनी बँसवरिया में धोबिनी चिरइया,
घुघवा पहरुआ जगावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।

टाइल शरद ऋतु उगल अँजोरिया,
दुधवा में लउके नहाइल नगरिया।
सिहरी गइल सखि छतिया निरखि चाँद,
पुरवा झटकि सिहरावे कोइलिया।। कुहुकि.....।।

ठिठुरि शरद ऋतु ओढ़ले दोलइया,
केंकुरी कुहरियाँ में कटेला समइया।
मागल उमिरिया, जड़इया के जगरम
अइसन सरदिया मुआवे कोइलिया।। कुहुकि.....।।

सरसो-केरइया-सनइया फुलाइल,
झिर-झिर-झिहिर शिशिर-ऋतु आइल।
सलिया गुजरि गइल, तबहूँ ना हलिया,
पुरुब मुलुकवा से आवे कोइलिया।। कुहुकि.....।।