वह छोटी एकाकी चिड़िया
बिलकुल हलकी
दो अंगुल की
परम सुंदरी, पीत वर्ण की
मेरे उपवन में है रहती।
दिन में इधर उधर उड़ती है
संध्या को वापस आ जाती
आकर पहले नीबू द्रुम की
इस डाली से उस डाली पर
उड़ती रहती फुदक फुदक कर
आभासित होता देख उसे
वह नीचे जाने से पहले
कर रही आकलन आशंकित
संरक्षा और सुरक्षा का
जब सब कुछ पाती उचित रूप
और हो जाती संतुष्ट पूर्ण
तब पुष्प बिटप पर नीचे आती
रात्रि शयन को जगह ढूँढ़ती
और एकाएक किसी फूल के
पौधे में प्रवेश कर जाती ।
प्रथम बार जब देखा उसको
जाते एक घने पौधे में
सोचा अभी निकल आयेगी
कुछ चुगने वहाँ गई होगी
थोड़ी देर नहीं जब आई
तनिक निकट तब देखा जाकर
वह एकाकी, पंख पसारे
सोई थी पत्ते के ऊपर।