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एके नमस्कार में प्रभु हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

एके नमस्कार में प्रभु हो;
एक बार के नमस्कार में।
देह हमार लुटा दे सरबस
तहरा चरनन के दुआर में।
सावन-धन जलकन से लदरल
जइसे झुक जाला धरती पर।
ओइसे रसगर नम्र विनत मन
झुक जावे तहरा देहरी पर।
एके नमस्कार में प्रभु हो,
एक बार के नमस्कार में।
मन हमार हो जाय समर्पित
तहरा पावन घर-दुआर मेभें।
नाना सुर नाना स्वर के बा
धार बहुत अकुलाइल मन में।
एक हमार अलाप समेटे,
सबके एके लय-बभेंधन मेभें।
एके नमस्कार में प्रभु हो,
एके बार के नमस्कार में।
गीत हमार समर्पित होखे
तहरा शांत महासागर में।
हंस उड़ान भरेला जइसे
हरदम मानसरोवर पथ में।
तइसे प्राण हमार चले उड़
हरदम महामरन के पथ में
एके नमस्कार में प्रभु हो,
एक बार के नमस्कार में।