एक अकेला
कँवल ताल में
संबंधों की रास खोजता !
आज त्राण फैलाके अपने ,
तिनके-तिनके पास रोकता !!
बहता दरिया चुहलबाज़ ... है
तिनका तिनका छिना कँवल से !
दौड़ लगा देता है पागल
कभी त्राण-मृणाल मसल के !
सबका यूं वो प्रिय सरोज है ,
उसे दर्द क्या ?
कौन सोचता !!