Last modified on 9 नवम्बर 2009, at 23:31

एक अदद इंतज़ार / वर्तिका नन्दा

सपने बेचने का मौसम आ गया है।

रंग-बिरंगे पैकेज में
हाट में सजाए जाएँगे- बेहतर रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई के सपने।

सपनों की हाँक होगी मनभावन
नाचेंगें ट्रकों पर मदमस्त हुए
कुछ फिल्मी सितारे भी
रटेंगे डायलाग और कभी भूल भी जाएँगे
किस पार्टी का करना है महिमा गान।

जनता भी डोलेगी
कभी इस पंडाल कभी उस
माइक पकड़े दिखेगें उनमें कई जोकर से
जो झूठ बोलेगें सच की तरह

और जब होगा चुनाव
अंग्रेज़दां भारतीय उस दिन
देख रहे होंगे फिल्म
या कर रहे होंगे लंदन में शापिंग
युवा खेलेंगे क्रिकेट
और हाशिए वाले लगेंगे लाइनों में
हाथी, लालटेन, पंजे या कमल
लंबी भीड़ में से किसी एक को चुनने।

वो दिन होगा मन्नत का
जन्नत जाने के सपनों का
दल वालों को मिलेंगे पाप-पुण्य के फल।

उस दिन मंदिर-मस्जिद की तमाम दीवारें ढह जाएँगी
चश्मे की धूल हो जाएगी खुद साफ़
झुकेगा सिर इबादत में
दिल में उठेगी आस
कि एक बार - बस एक बार और
कुर्सी किसी तरह आ जाए पास।

सच तो है।

अगली पीढ़ियों के लिए आरामतलबी का सर्टिफिकेट
इतनी आसानी से तो नहीं मिल सकता।

रचनाकाल : ३ नवंबर २००८