एक अच्छी कविता वह है
जिसे पढ़ते हुए कोई रो दे
लेकिन उससे भी अच्छी कविता वह है
जिसे पढ़ते हुए
मन कुछ बेहतर करने की तड़प से भर जाए
उठे हिलोर कि नहीं नहीं अब और नहीं सहो अन्याय
कि अब कोई राह निकले
कि बेड़ियां टूटे
कि कुछ हो
सोचिए, ऐसी कविता लिखते समय
कवि ने अपने अंदर सहा होगा कितने भीषण तूफान का झोंका
अंदर कितना कुछ टूटा-फूटा होगा
कितना फैला होगा दर्द का समंदर?
फिर कितनी मुश्किल से मुस्कुराने के काबिल हुआ होगा कवि?