उसकी किंचित अँदर की ओर धँसी
काली झाइयोंवाली
काष्ठ आँखों में
कैद नहीं कोई सपना
चेहरा
तल से चिपका हुआ पोखर
मुस्कान दीखती है एक पैबंद-सी
वर्तमान झरता रहता है
ब्लैकबोर्ड पर से चाक की तरह
उँगलियाँ बुनती रहती हैं भविष्य
सलाइयों की तरह
वह आती है
जाती है
चाभी भरे खिलौने की तरह
एक थर्मामीटर है ऐसा
जिसमें किसी भी तापमान पर
पारा न चढ़ता है, न उतरता है
लगता है
इस खामोश प्यानो के सुरों को
कभी छेड़ा नहीं किसी ने
जमती रही धूल इनपर
संगीत पैदा होने की अवधि
चुकती जा रही है
किसी बूढ़ पेड़ की डाल की तरह
झुकती जा रही है देह
अपने ही बोझ से
ज़िंन्दगी
उदास, थकी चिड़िया की तरह पकड़ से दूर
जा बैठी है किसी ऊँची
बहुत ऊँची मुँडेर पर
नीचे अथाह शून्य है
काँच के टुकड़ों की तरह फैला हुआ.