मन अँधा
धृतराष्ट्र सम
पूछे ...
संजय रुपी
बुद्धि से
मानव साम्राज्य
इस शरीर में
जो कर्म क्षेत्र है
और धर्म क्षेत्र भी ..
क्या हो रहा है... ?
तेरे अधीन
विवेक हीन
निरंकुश विचार
दानव वृत्तियाँ
पनप रही हैं..
सुन्दर
अबला सम
कोमल भावनाएँ
लोह मोह युक्त
अहंकार से
मसली जा रही हैं...
कृष्ण सम
विवेक!
सत्य
अहिंसा
उग्रता के पाँव तले
कुचले जा रहे हैं....
शायद एक और
महाभारत होने जा रहा है...