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एक कंधा / तेज राम शर्मा

दुखों के टूटते पहाड़ हों
दोस्ती के हों हाथ
अविरल आँसुओं की हो धार
नन्हें पाँव लांघ लेना चाहते हों
पहाड़ की चोटी
प्रेम-भरा कोई मन
पहाड़-सा कोई बोझ
दुल्हन की डोली
देवता की पालकी
या निकला हो कोई वापस
न मुड़ने वाली
लंबी यात्रा पर
सभी ढूंढ रहे हैं
एक कंधा।