इन दिनों
तुम्हारे गर्म सांसों को
महसूसते हुए
तुम्हारे चौड़े सीने पर
सुकून पाती हूँ
थक कर जब भी बैठती हूँ
कंधा तैयार रहता है तुम्हारा
कुछ पल तुम्हारे कंधे का साथ
नमी से भर देता है मुझे
मैं औंधी लेटती हूँ
तुम धुन-सा बजते हो कहीं
बंद कपाटों के बीच
मैं हृदय-द्वार पर बैठी
थाह लेती हूँ
तुम्हारे सामीप्य का
और पसार देती हूँ पैर
ख़्वाहिश करती हूँ
तुम ले आओगे
एक कप गर्म-चाय॥