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एक गली थी / कुमार रवींद्र

बात पुरानी
एक गली थी
उसी गली में सब रहते थे

बाम्हन-पासी-कायथ-खत्री
नगरसेठ भी
एक सहन था -
खुले पड़े रहते थे उसमें
सभी 'गेट' भी

छुआछूत थी
सुख-दुख सब मिलकर सहते थे

पिछवाड़े थे मुसलमान
उनकी मस्जिद थी
साथ आरती औ' अज़ान हों
यही हमारी-उनकी ज़िद थी

परनाले भी
दोनों के सँग-सँग बहते थे

कुछ दूरी पर राजमहल था
वहीं चर्च था
वक़्त बुरा था
पर दिल सबका शाहखर्च था

खुले प्यार से
सब अपने शिकवे कहते थे