हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
एक घोड़ी नजारे ते आई उसके दादा ने रास बुलाई हो राम
घोड़ी की चाल सवा सलड़ी।।
घोड़ी होठां नै मरकावै बनड़े ने खान सिखावै हो राम
घोड़ी की चाल सवा सलड़ी।।
घोड़ी आखियां नै मरकावै बाले बनड़े नै सैन सिनावै हो राम
घोड़ी की चाल सवा सलड़ी।।
घोड़ी पायां ने मरकावै बाले बनड़े ने चाल सिखावै हो राम
घोड़ी की चाल सवा सलड़ी।।
एक घोड़ी नजारे ते आई उसके दादा ने राम बुलाई हो राम
घोड़ी की चाल सवा सलड़ी।।