द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो यानि विलुप्त होती हुई गौरैया के बारे में कुछ नोट्स
6.
एक चिड़िया दिखी थी खलिहान में
उसके शरीर का रंग धुआँस लिए था
अंदर की अंदर जो पक रहा था
एक उत्तप्त दुख था
पंखों के भीतर भूरे-सफ़ेद रोयें
भीगे हुए थे
कोई आस थी जो निथर रही थी बूंद-बूंद
उसकी निष्कलुष आँखें न जाने क्यूँ
पृथ्वी पर फैले समूचे आसमानी-हरे रंग को
सोख लेना चाहती थीं
वह इतनी चुप थी कि
उसकी आवाज़ सुनाई पड़ रही थी
(’द फ़ाल आफ़ ए स्पैरो’ प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डा. सालिम अली की आत्मकथा का शीर्षक है