चेतना के केन्द्र पर,
बन्द द्वार खोल कर रहस्य का!
अतल अतीत की दरार से,
खिल उठा प्राण-कण मिट्टी का!
बीज विष्णुत्व का,
अंकुरित अर्थों से वर्णों और रूपों में,
पग-पग पर सहज सरल,
विद्युत्संचार से,
नूतन व्यक्तित्व का सृजन कर!
द्यावा और पृथिवी के मण्डल को-
रक्तिम आलोक से प्रज्वल कर।
मिथ्या मोह-पाश के बन्धनों को छिन्न कर,
क्षुद्र अवगुंठन को भंग कर,
शिलीभूत पंजरों को तोड़ कर
युग-युग के पड़ावों लाँघ कर,
नीचे से ऊपर तक आदि से अन्त तक,
बदल कर रोमकोशों, कोश भित्तिकाओं को
अणिमा से भूमा बन-
परम की प्यास में अनन्त तक!
अनुभव की भूमिका में,
खिल उठा प्राण-कण मिट्टी का।