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एक ज़माना था / कमलेश द्विवेदी

वो भी एक ज़माना था.
दिल उसका दीवाना था.

दूर बहुत था उसका घर,
फिर भी आना-जाना था.

डूबा रहता था अक्सर,
आँखें क्या, मैख़ाना था.

कुछ मुस्कानें पाया मैं,
उसके पास खज़ाना था.

राह मुड़ी सँग छोड़ गया,
उसको साथ निभाना था.

तब लगता था-अपना है,
अब लगता-बेगाना था.