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एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे ,
सिर्फ़ जीने भर को हम क्यों ज़िन्दगी कहते रहे

लोग प्यासे कल भी थे हैं आज भी प्यासे बहुत ,
फिर भी सब सहरा को जाने क्यों नदी कहते रहे

हम तो अपने आप को ही ढूंढते थे दर-ब-दर ,
लोग जाने क्या समझ आवारगी कहते रहे

अब हमारे लब खुले तो आप यूं बेचैन हैं ,
जबकि सदियों चुप थे हम बस आप ही कहते रहे

रहनुमाओं में तिज़ारत का हुनर क्या खूब है ,
तीरगी दे करके हमको रोशनी कहते रहे