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एक टुकड़ा आसमान / शशि सहगल

हर महीने की पहली तारीख़ को
कहते हो तुम लिस्ट बना दो
पूरे महीने को सामान
नोन, तेल, लकड़ी
साथ में कंघा, तेल, ब्रश
सालों साल हो गये
इस रूटीन को देहराते
पहली से तीस तारीख का सामान भरते
पर क्या वह भरा?
क्यों नहीं इस बार कुछ नया करें
भूल जाओ साबुन, तेल, ब्रश
और ले आओ
एक छोटा सा टुकड़ा आसमान
जो अपने आँचल में
बादलों सा उड़ता रहे मुझे
कभी इधर कभी उधर
हवा से भी हल्की हो मैं
सभी दबावों से मुक्त
जीना चाहती हूँ यह अहसास
चाहिए मुझे थोड़ी सी खुली धूप
सभी वर्जनाओं से दूर
मूल्यों अवमूल्यों से उदासीन
आंगन के खुले में फैली
दरवाज़ों के दरीचों से भीतर घुसती
मेरी ऊष्मा को
और अधिक गरमाती।
अभी मेरी लिस्ट पूरी नहीं हुई
लाना थोड़ी सी खुली ताज़ी हवा
जिसे मुंह में भर कर
मन की घुटन और असमर्थता का
सारा प्रदूषण फेंक सकूँ बाहर
ऐसी हो वह ताज़ी हवा।
यही कुछ सामान भर लाओ
अपने झोले में इस बार
लाओ तो सही
झूमेंगे दोनों साथ-साथ।